आर्यन के इस कदम से कुछ दिन के लिए घर का ये बवंडर थम गया। मम्मी ने आर्यन का कुछ ज़्यादा ही ख्याल रखना शुरू कर दिया।
लेकिन आर्यन ने ये भी अनुभव किया कि मम्मी-पापा के बीच की कड़वाहट मिटी नहीं है। वे एक दूसरे से खिंचे -खिंचे ही रहते थे। अब उसे लगने लगा था कि उसे भी मम्मी-पापा को इकठ्ठा देखने की कामना से ज़्यादा अपने पैरों पर खड़ा होने की ओर ध्यान देना चाहिए। वह घर-परिवार की ओर से उदासीन होता चला जा रहा था।
उसे अपनी हिंदी की किताब में लिखा रहीम का वह दोहा भली भांति समझ में आने लगा था जिसमें रहीम ने बेर और केर,यानी बेर और केले के पेड़ के एक साथ न रह पाने की बात कही थी।आर्यन को लगता था कि वह भी ऐसे बाग़ का फूल है जहाँ बेर और केले का पेड़ एक साथ उगा हुआ है।
एक का गात बेहद मुलायम, तो दूसरे के बदन पर कांटे।
वह समय से पहले ही समझदार होता जा रहा था। अब उसे ऐसे ख्याल बचकाने लगते थे कि वह जबरन मम्मी को किसी और तरफ ध्यान देने से रोके। अथवा उनके किसी काल्पनिक संभावित मित्र का पता लगाए। उसने पापा पर भी अकारण तरस खाना छोड़ दिया था।
वह अब पहले की तरह खुशमिज़ाज़ और सबसे दोस्ताना व्यवहार रखने वाला आर्यन न रहा था जिसके एक बार कहने मात्र से उसका दोस्त उसके साथ घर पर बिना पूछे रातभर बाहर रुकने को तैयार हो जाये। बल्कि इसके उलट वह अब एक गुमसुम सा, अपने आप में खोया रहने वाला बच्चा बनता जा रहा था। और सच पूछो तो बच्चा भी कहाँ, वह तो अब किसी अकेले बैठे दार्शनिक सा अलग-थलग रहने वाला आर्यन बन गया था। उसके दोस्त भी हैरान थे उसके इस व्यवहार पर।
एक दिन तो वह हैरान रह गया जब उसने एक किताब में पढ़ा कि स्त्री और पुरुष यदि एक दूसरे से संतुष्ट न रहें तो प्रकृति किसी न किसी रूप में उन्हें हमेशा के लिए अलग कर देने की तैयारी करने लगती है। वह सिहर उठा। उसका मन स्कूल की लायब्रेरी में न लगा, वह जैसे ही बाहर आया तो देखा कि विद्यालय में भगदड़ सी मची हुई है। थोड़ी ही देर में स्कूल की छुट्टी कर दी गयी। अफरा -तफरी मची हुई थी,सब एक दूसरे से पूछ रहे थे, किसी को पता न था कि हुआ क्या है।
तभी हड़बड़ाते हुए दिव्यांश ने आकर बताया कि अभी-अभी साइंस लैब में एक दुर्घटना हो गयी। दो लड़के बुरी तरह ज़ख़्मी हुए थे। उन्हें हस्पताल ले जाया गया था। इसी से छुट्टी की घोषणा हो गयी थी।
दिव्यांश बता रहा था कि लैब में काम करते हुए कैमेस्ट्री टीचर ने दो केमिकल सॉल्यूशंस रखे थे और वे कुछ बता ही रहे थे,कि मोबाइल पर फोन आ गया। वह बात करते-करते बाहर जाते हुए बच्चों से कह गए कि इन्हें मिलाना मत। पर उनकी अनुपस्थिति में एक शरारती लड़के ने सामने पड़ी प्लेट में दोनों को थोड़ा सा मिला दिया। बाकी लड़के भी तमाशा देखने के जोश में चुपचाप बैठे देखते रहे,किसी ने उसे ऐसा करने से रोका नहीं।
देखते ही देखते ज़ोरदार धमाका हुआ और किसी बम के फटने की सीआवाज़ हुई। अध्यापक पलट कर दौड़े किन्तु तब तक सामने बैठे दो लड़के बुरी तरह घायल हो चुके थे।
उस रात खाना खाकर आर्यन जब सोया तो उसे बहुत गहरी नींद आयी। उसने नींद में ही सपना देखा कि वह आगे पढाई करने के लिए किसी बड़े शहर के हॉस्टल में चला गया है। उसने सपने में ही देखा कि होस्टल में उससे मिलने के लिए एक रविवार को पापा आते हैं और दूसरे को मम्मी।
इतना ही नहीं, उसके कमरे में दो दरवाजे हैं, मम्मी हमेशा आगे वाले दरवाज़े से आती हैं, और पापा पीछे वाले दरवाज़े से.... इस खुशनुमा हवादार कमरे में खिड़कियां भी दो हैं, एक खिड़की से उसे गहराई रात में चाँद दिखाई देता है, दूसरे से दिन उगते ही सूरज झाँका करता है।
पूरी कायनात एकसाथ देखने की ज़िद अब वो छोड़ चुका है।
लेकिन आर्यन ने ये भी अनुभव किया कि मम्मी-पापा के बीच की कड़वाहट मिटी नहीं है। वे एक दूसरे से खिंचे -खिंचे ही रहते थे। अब उसे लगने लगा था कि उसे भी मम्मी-पापा को इकठ्ठा देखने की कामना से ज़्यादा अपने पैरों पर खड़ा होने की ओर ध्यान देना चाहिए। वह घर-परिवार की ओर से उदासीन होता चला जा रहा था।
उसे अपनी हिंदी की किताब में लिखा रहीम का वह दोहा भली भांति समझ में आने लगा था जिसमें रहीम ने बेर और केर,यानी बेर और केले के पेड़ के एक साथ न रह पाने की बात कही थी।आर्यन को लगता था कि वह भी ऐसे बाग़ का फूल है जहाँ बेर और केले का पेड़ एक साथ उगा हुआ है।
एक का गात बेहद मुलायम, तो दूसरे के बदन पर कांटे।
वह समय से पहले ही समझदार होता जा रहा था। अब उसे ऐसे ख्याल बचकाने लगते थे कि वह जबरन मम्मी को किसी और तरफ ध्यान देने से रोके। अथवा उनके किसी काल्पनिक संभावित मित्र का पता लगाए। उसने पापा पर भी अकारण तरस खाना छोड़ दिया था।
वह अब पहले की तरह खुशमिज़ाज़ और सबसे दोस्ताना व्यवहार रखने वाला आर्यन न रहा था जिसके एक बार कहने मात्र से उसका दोस्त उसके साथ घर पर बिना पूछे रातभर बाहर रुकने को तैयार हो जाये। बल्कि इसके उलट वह अब एक गुमसुम सा, अपने आप में खोया रहने वाला बच्चा बनता जा रहा था। और सच पूछो तो बच्चा भी कहाँ, वह तो अब किसी अकेले बैठे दार्शनिक सा अलग-थलग रहने वाला आर्यन बन गया था। उसके दोस्त भी हैरान थे उसके इस व्यवहार पर।
एक दिन तो वह हैरान रह गया जब उसने एक किताब में पढ़ा कि स्त्री और पुरुष यदि एक दूसरे से संतुष्ट न रहें तो प्रकृति किसी न किसी रूप में उन्हें हमेशा के लिए अलग कर देने की तैयारी करने लगती है। वह सिहर उठा। उसका मन स्कूल की लायब्रेरी में न लगा, वह जैसे ही बाहर आया तो देखा कि विद्यालय में भगदड़ सी मची हुई है। थोड़ी ही देर में स्कूल की छुट्टी कर दी गयी। अफरा -तफरी मची हुई थी,सब एक दूसरे से पूछ रहे थे, किसी को पता न था कि हुआ क्या है।
तभी हड़बड़ाते हुए दिव्यांश ने आकर बताया कि अभी-अभी साइंस लैब में एक दुर्घटना हो गयी। दो लड़के बुरी तरह ज़ख़्मी हुए थे। उन्हें हस्पताल ले जाया गया था। इसी से छुट्टी की घोषणा हो गयी थी।
दिव्यांश बता रहा था कि लैब में काम करते हुए कैमेस्ट्री टीचर ने दो केमिकल सॉल्यूशंस रखे थे और वे कुछ बता ही रहे थे,कि मोबाइल पर फोन आ गया। वह बात करते-करते बाहर जाते हुए बच्चों से कह गए कि इन्हें मिलाना मत। पर उनकी अनुपस्थिति में एक शरारती लड़के ने सामने पड़ी प्लेट में दोनों को थोड़ा सा मिला दिया। बाकी लड़के भी तमाशा देखने के जोश में चुपचाप बैठे देखते रहे,किसी ने उसे ऐसा करने से रोका नहीं।
देखते ही देखते ज़ोरदार धमाका हुआ और किसी बम के फटने की सीआवाज़ हुई। अध्यापक पलट कर दौड़े किन्तु तब तक सामने बैठे दो लड़के बुरी तरह घायल हो चुके थे।
उस रात खाना खाकर आर्यन जब सोया तो उसे बहुत गहरी नींद आयी। उसने नींद में ही सपना देखा कि वह आगे पढाई करने के लिए किसी बड़े शहर के हॉस्टल में चला गया है। उसने सपने में ही देखा कि होस्टल में उससे मिलने के लिए एक रविवार को पापा आते हैं और दूसरे को मम्मी।
इतना ही नहीं, उसके कमरे में दो दरवाजे हैं, मम्मी हमेशा आगे वाले दरवाज़े से आती हैं, और पापा पीछे वाले दरवाज़े से.... इस खुशनुमा हवादार कमरे में खिड़कियां भी दो हैं, एक खिड़की से उसे गहराई रात में चाँद दिखाई देता है, दूसरे से दिन उगते ही सूरज झाँका करता है।
पूरी कायनात एकसाथ देखने की ज़िद अब वो छोड़ चुका है।
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