शनिवार, 7 जनवरी 2017

[2]

पेट में थोड़ा खाना पड़ जाने के बाद आर्यन ने रोते-रोते अपने सबसे अच्छे दोस्त को जो कुछ बताया उसमें अविश्वास करने जैसा कुछ नहीं था क्योंकि पहले भी कई बार वह दिव्यांश को अपने मम्मी-पापा के बीच होने वाले झगड़ों के बारे में काफी-कुछ बता चुका था। आश्चर्य तो केवल ये था कि  बात यहाँ तक पहुँच गयी? आज आर्यन के सामने पापा ने पहली बार मम्मी से ये कह दिया था कि "... अगर तुम्हें मेरी सूरत से इतनी ही नफ़रत है तो अलग घर ले लो, जहाँ मेरी परछाईं से भी दूर रह कर आराम से रह सको।"
रुंधे गले से आर्यन बोलता रहा। उसने दिव्यांश को बताया-"मैं सुबह स्कूल आते समय पॉकेटमनी पापा से लेता हूँ और टिफिन मम्मी से। रात को मैथ्स का होमवर्क मम्मी करवाती हैं और सोशल साइंस का पापा। वो दोनों ये क्यों नहीं समझते कि अलग-अलग घर में रहने से उन्हें तो पूरा-पूरा घर मिल जायेगा पर मेरी दुनिया टूट जाएगी। टूटा -फूटा अपाहिज जीवन।"
वह आगे और कुछ न कह सका, उसकी रुलाई फूट पड़ी। दिव्यांश ने अपने से सटा कर उसे भींच लिया।
आर्यन ये देखना चाहता था कि  उसके मम्मी-पापा को उसकी कितनी फ़िक्र है, इसीलिये उसने ये कड़ा कदम उठाया था। वह घर पर बिना बताये स्कूल में ही रुक गया था। पर ऐसा करते हुए वह मन ही मन डर भी रहा था इसलिए उसने अपने दोस्त दिव्यांश को भी जबरन अपने साथ रोक लिया था।
इस वक्त जैसे-जैसे अँधेरा बढ़ रहा था आर्यन को अपना दोस्त अपने माँ-बाप से भी ज़्यादा हितैषी दिखाई दे रहा था। सच पूछो तो माँ-बाप हितैषी थे कहाँ? उन्हें तो बेटे के सुकून से अपने-अपने अहम ज़्यादा प्यारे थे।
भावुकता में आर्यन दोस्त के सामने ये राज़ भी आहिस्ता से खोल बैठा कि घर की कलह से तंग आकर उसके पापा एक बार आत्म-हत्या की कोशिश भी कर चुके हैं। वे एक रात झगड़ा होने के बाद ढेर सारी नींद की गोलियाँ खाकर सो गए थे।
-"झगड़ा होता किस बात पर है?" दिव्यांश ने किसी बड़े-बूढ़े की भांति जानना चाहा। मानो झगड़े का कारण पता लगने पर वह उसे मिटा ही छोड़ेगा।
-"क्या पता, पर कभी-कभी मुझे लगता है कि गलती पापा की नहीं होती, बल्कि मम्मी ही उन्हें उल्टा-सीधा बोलकर उकसाती हैं।"आर्यन ने कहा।
-"कहीं, .... जाने दे, जाने दे।"दिव्यांश कुछ बोलते-बोलते रुक गया।
-"बोल न, क्या बोल रहा था?" आर्यन ने भोलेपन से कहा।
-" नहीं मेरा मतलब था कि कहीं तेरी मम्मी का ....किसी और से ..." दिव्यांश बोलता-बोलता चुप हो गया। टीवी -सिनेमा के सामने घंटों गुज़ारते बच्चों के जेहन में ये सब बातें आना कोई अजूबा तो नहीं था ,पर बात क्योंकि अपने सबसे अच्छे दोस्त की थी इसलिए दिव्यांश कुछ संकोच से रुक गया।
आर्यन मुंह फाड़े उसकी ओर देखता रह गया। वह मन ही मन जैसे बुझ सा गया।                               

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें