बुधवार, 19 अक्टूबर 2016

[४]
सब लोग सारा माजरा समझ गए, लेकिन साथ में ये भी समझ गए कि साहब लोगों के पास अगर उनकी शिकायत पहुंची तो एक-एक की ख़ैर नहीं।
घर की नौकरानी ने जब अनजाने ही ये राज खोल दिया कि साहब और मेमसाहब के बीच ओहदे को लेकर तनातनी रहती है तो सबको ये भी पता चल गया कि नौकरानी काफ़ी पुरानी है और उसके तरकश में और भी कई तीर हैं।
सब समय मिलते ही आते-जाते हुए उसे और कुरेदने की कोशिश करते। उसने भी इसी बहाने सब चपरासियों, ड्राइवरों और नीचे तबके के इन लोगों पर सिक्का जमाने को अपना शगल बना लिया।
गेट पर तैनात, कलेक्टर साहिबा का एक संतरी दो-एक बार इन लोगों को हड़का भी चुका था।
लेकिन माली रामप्रसाद के मन में उस दिन से मेमसाहब का रुतबा और भी बढ़ गया। वह दिल से उनका सम्मान पहले से भी ज़्यादा करने लगा।
वह रोज़ चुनिंदा फूलों का एक शानदार गुलदस्ता तैयार करता और घर के विज़िटर्स रूम में उस मेज पर सजाता, जहाँ मैडम सुबह के समय आगंतुकों से मिल कर उनकी समस्याएं सुना करती थीं। भीतर के बरामदे में साहब ने भी एक टेबल लगवाई थी जहाँ शाम को कभी-कभी वह दारू पीने बैठा करते थे। फ्लॉवरपॉट वहां भी था, पर माली रामप्रसाद ने कभी वहां भूल कर भी एक पत्ती तक नहीं सजाई थी।
एक बार नौकरानी ने माली को टोका भी,कि अंदर की मेज पर भी फूल रखा करे। रामप्रसाद उस दिन बड़े बेमन से क्यारी में नीचे गिरे गेंदे के कुछ फूल समेट कर ठूँस गया।
जबकि मेमसाहब की मेज़ का गुलदस्ता वह ताज़ा खिले गुलाबों से सजाता था।
एक दिन बाहर के लॉन में सुबह घर के सब लोग बैठे चाय पी रहे थे, तब माली एक सुंदर सा ताज़ा खिला गुलाब लेकर मेमसाहब के सामने पहुँच गया और उन्हें भेंट करके उसने साहब की ओर कनखियों से देखते हुए मैडम को एक ज़ोरदार सैल्यूट मारा। मैडम मुस्करा कर रह गयीं।
लेकिन साहब के मानस-महल में मानो माली के व्यवहार से भयानक टूटफूट सी हो गयी। उन्होंने चिढ कर अख़बार उठा लिया।
साहब की माताजी ने तो प्याले में चाय अधूरी छोड़ दी और उठ कर भीतर अपने कमरे में चली गयीं।
असल में रामप्रसाद के इस व्यवहार के पीछे भी एक कारण था। उस गरीब के तीन बेटियां थीं, जिन्हें उसने किसी तरह हाथ-पैर जोड़ कर ब्याह तो दिया था, मगर वे सभी अपने-अपने घर में अपने शौहरों के जुल्म सह रही थीं।
बड़ी बेटी तो दसवीं तक पढ़ कर पंचायत में आशा-सहयोगिनी के पद पर नौकरी भी कर रही थी। मगर उसका निखटटू पति सारा दिन बेकार घूम कर समय काटता था। उसका पूरा घर पत्नी की कमाई से ही चलता था पर पत्नी से घर में कोई सीधे-मुंह बात तक नहीं करता था। बीमारी तक में उसे इस डर से छुट्टी नहीं लेने देते थे कि कहीं पैसे न कट जाएँ। घर के काम में कभी कोई मदद न करता।
उधर मझली अपने लंबे चौड़े परिवार के कारण हलकान थी। उसे अनपढ़ होने के ताने मिलते।
तीसरी तो आये दिन पीहर में ही आ बैठती थी। घर के झगड़े उस से सहन नहीं होते थे।              
 
 
                   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें