सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

[३]
एस्टेब्लिशमेंट सेक्शन के दफ्तरी दुर्गालाल ने अपनी गोपनीयता भरी वाणी में कोई रहस्योद्घाटन सा करते हुए कहा- शायद प्रधानमंत्री कार्यालय से आयी कुछ योजनाओं के बाबत बाहर की दीवार पर जानकारी लिखी जाएगी, इसी से नाम-पट्टिका भीतर लायी गयी है।
-अरे पर दीवार पर जगह की कोई कमी है क्या, नामपट्ट लगाने के लिए जगह ही कितनी चाहिए? गार्ड ने शंका जताई। उसे ये काफी नागवार गुज़र रहा था कि बंगले के बाहर साहब का नाम क्यों नहीं लिखा जा रहा ?आखिर उसकी शान तो दिनभर गन हाथ में लेकर गेट पर नाम के साथ खड़े होने में ही थी। हर आता-जाता देखे तो सही, वह किसका सुरक्षा-गार्ड है। शहर के वीआईपी इलाके से गुज़रने वाले लोग तो बड़े लोगों की नेम-प्लेट देखते हुए ही गुज़रते हैं।
-नाम-पट्टिका तो पूरी दो बाई दो फिट की है, छोटी थोड़े ही है, जीएडी के चपरासी ने अपना पेंच रखा।
तो क्या, अब उसकी वैल्यू ही क्या रह जाएगी बरामदे में टांगने से?
शोर-शराबा सुन कर बंगले के बैठक-कक्ष में डस्टिंग कर रही महिला भी बाहर निकल आई।  उसे बड़ा अचम्भा हुआ, जब उसने देखा कि इतने सारे लोग घर के बाहर खड़े साहब लोगों की नेम-प्लेट पर छींटाकशी कर रहे हैं। घर की वह नौकरानी साहब लोगों के थोड़ी मुंहलगी भी थी और काफी पुरानी भी। इसी से वह फैमिली मेम्बरों की तरह ही घर पर अपना कुछ अधिकार भी समझती थी।
वह लगभग झिड़कने के से स्वर में ही बोली- मेम साहब ने ही बोला है तख्ती भीतर टांगने को।
-क्यों? तीन-चार लोग लगभग एक साथ बोल पड़े।
-अरे बाबा, तुमको दीखता नहीं? पट्टी पर दोनों साहब का नाम है। साहब का भी और मेम साहब का भी।
यह सुनते ही गिरधारी लाल के हाथ में पकड़ी नेम-प्लेट को सब पॉलीथिन का कवर हटा कर देखने लगे। सच में वहां श्री और श्रीमती पंड्या दोनों का नाम लिखा था।
रश्मि पंड्या आई ए एस ऊपर था,और सिद्धार्थ पंड्या, पी सी एस उसके नीचे।
अब खुसर-फुसर की दिशा बदल गयी।
साहब पी सी एस हैं ? उनका तबादला भी तो आठ दिन पहले यहाँ हुआ है। एक कर्मचारी ने मानो राज खोला।
तो क्या मैडम साहब से बड़े ओहदे पर हैं? दफ्तरी को मानो विश्वास नहीं हुआ।
-हैं तो क्या ? इसी से तो मेमसाहब ने नाम पट्टी इधर टांगने को बोला, बाहर से सब शहर का लोग देखेगा नहीं कि मेमसाहब साहब से बड़े ओहदे पर हैं, इधर का जिला अधिकारी ? साहब का फालतू में हेठी होगा। नौकरानी ने शान से ये रहस्य खोल कर सब पुरुषों को मानो मात ही दे डाली हो। उसकी आवाज़ ऐसे खनक रही थी जैसे उसकी मालकिन नहीं, बल्कि वह खुद इस शहर की जिला अधिकारी हो और ये सारे उसके मातहत। वह इतना ही बोल कर नहीं रुकी,  उसने एक रहस्य और खोल दिया, बोली- मालूम है, दो महीना पहले साहब का माँजी आया था तब वो भी साहब को बोला कि इधर ट्रांसफर मत कराना , नहीं तो बहू के रुतबे में रहना पड़ेगा। और ज़्यादा दिमाग चढ़ेगा उसका। नौकरानी ने झटपट मुंह पर हाथ रखा, ... बाबा ये क्या बोल गयी सब लोग के सामने?
अच्छा तभी ?...जीएडी के बाबू ने घोर आश्चर्य से कहा- पहले ये प्लेट गलत बन गयी थी।  ऊपर साहब का नाम था, नीचे मेम साहब का।
गलत नहीं बनी थी, मैडम ने खुद अपने हाथ से लिख कर दिया था, साहब का नाम ऊपर और अपना नीचे, मैं ही देने गया था डिपार्टमेंट के पेंटर को। ड्राइवर बोला।
-फिर?
-फिर क्या, प्रोटोकॉल वाले उसे कैंसल कर गए, दोबारा बनी। इस मामले में उन्होंने जिला अधिकारी के हाथ का लिखा भी काट दिया। ड्राइवर ने खुलासा किया।
पर मैडम ने ऐसा क्यों लिखा, क्या उनको मालूम नहीं है कि जिला अधिकारी का नाम किसी विभाग के अंडर सेक्रेटरी के नीचे नहीं लिखा जा सकता ?
...ड्राइवर मुंह फेर कर अपनी व्यंग्यात्मक हंसी रोकने की कोशिश करते हुए बोला- मुझे साहब के ड्राइवर ने सब बताया था, खुद साहब ने ही मेमसाहब को बोला था कि मेरा नाम ऊपर डालना, बेचारी मेमसाहब क्या करती ?कलेक्टर है तो क्या ,ऊपर तो साहब ही रहेंगे।
... औरत है न बेचारी। नौकरानी के ऐसा बोलते ही एकदम चुप्पी छा गयी।
सब तितर-बितर होने लगे। कौन जाने कल ही साहब के पास इस मीटिंग की खबर पहुँच जाए,और लाइन हाज़िर होना पड़े.....       
               

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