बुधवार, 28 सितंबर 2016

साफ़ -सफ़ाई होती अच्छी
रहे स्वच्छता सदा मिशन
मंगल -ग्रह पर करें सफाई
मिल जाये जो परमीशन
बोला शेर- "वहां कर दूंगा
साफ-सफाया हिरनों का"
चला मिटाने धूर्त भेड़िया
नामो-निशाँ मेमनों का
कुत्ता कहता-"एक न छोड़ूं
मंगल ग्रह पर मैं बिल्ली"
बिल्ली बोली-"खाऊं चूहे
परमीशन देदे दिल्ली"
बच्चे बोले- "कैसी बातें
करते हैं ये अनपढ़ लोग
नहीं गंदगी दूर भगाते
बस करना चाहें सब भोज
खाना ही है तो फल खाओ
लीची-सेव-पपीता-आम
काम करो मेहनत से सारे
जिस से हो मंगल पे नाम" !   

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

श्रीहान और सुयश का स्कूल देख कर दोनों जुगनू "ए"और "वन" बहुत ही खुश हुए।
वे दोनों कॉकरोच के कंधे पर बैठ कर ही स्कूल आये थे। कॉकरोच की धीमी चाल के कारण कबूतर ने उसे चोंच में पकड़े एक तिनके पर बैठा लिया था और उड़ कर यहाँ ला पहुँचाया था।
स्कूल की प्रार्थना के बाद राष्ट्रगीत में जब बच्चों ने गाया -"जन गण मंगल दायक जय हे" तो दोनों जुगनुओं की आँखें ख़ुशी के आंसुओं भीग गयीं। अपने ग्रह का नाम इतनी दूर बच्चों के मुख से सुन कर वे गदगद हो गए।
लौटते समय जुगनू तो अपने ग्रह को याद कर रहे थे किन्तु कॉकरोच का पूरा ध्यान सुयश के टिफ़िन में बचे खाने पर था। वह इस इंतज़ार में था कि घर पहुँच कर सुयश के टिफ़िन की जूठन डस्टबिन में फेंकी जाए और उसे दावत मिले।
शाम को सबने मिलकर जुगनुओं को "ज़ू" दिखाने का कार्यक्रम बनाया। चिड़ियाघर कहे जाने वाले इस ज़ू में हाथी,ज़िराफ,ऊँट,शुतुरमुर्ग,दरियाईघोड़ा,बारहसिंघा,घोड़ा, गेंडा,भैंस,शेर,बाघ,चीता,रीछ,लकड़बग्घा,कंगारू,भेड़िया,हिरण,गोरिल्ला,लंगूर,बन्दर,मगरमच्छ,भालू जैसे एक से एक विशालकाय प्राणी थे। इनके साथ तोता,मोर,बगुला,नीलकंठ,कोयल,सारस,गौरैया,मैना , बत्तख और मुर्ग़े की छटा भी देखते ही बनती थी।  
जुगनुओं ने अब तक अपने दोस्तों -छिपकली,मेंढकी,कॉकरोच,कबूतर,गिलहरी आदि को ही देखा था।
जब उन्होंने वहां इन भीमकाय प्राणियों को देखा तो मन ही मन फ़ैसला किया कि वे इनमें से कुछ को अपने साथ मंगल पर चलने का निमंत्रण देंगे। उन्होंने सोचा-यदि ये वहां चले तो उनके ग्रह पर भी रौनक हो जाएगी।
गिलहरी को जैसे ही जुगनुओं की इस मंशा का पता चला, उसने तत्काल जुगनुओं को सलाह दी कि ये सब प्राणी भोजन-भट्ट हैं, इन्हें यूँही खाना मत देना, इनसे कुछ काम-धाम भी करवाना।
मेंढकी बोल पड़ी-"तुम मंगल ग्रह पर सफाई अभियान चला देना। इस से ये सब कुछ तो काम-धाम करेंगे"
                   
  

बुधवार, 21 सितंबर 2016

मंगल ग्रह से आये देखो
दो छोटे-छोटे मेहमान
आओ इन्हें घुमाएंगे हम
अपना प्यारा  हिंदुस्तान
इनका ग्रह है नया-नवेला
वहां नहीं रहते हैं लोग
ये संग उसको ले जायेंगे
काम करे डट के जो रोज
याद मगर ये रखना मित्रो
जीवन है वो मस्ती का
काम वहां मेहनत से करके
मान बढ़ाना धरती का !
मगर तभी तिलचट्टा आया
बोला चुपके कानों में
मंगल ग्रह जाने वालों के
नाम लिखे मेहमानों ने
नाना इनको नहीं भेजना
सारे बात बनाते हैं
हाथ नहीं धोते साबुन से
शौच खुले में जाते हैं !


तभी आसमान से अचानक ज़ोर-ज़ोर से बादलों के कड़कड़ाने की आवाज़ आने लगी। गरज के साथ ही कुछ मोटी-मोटी बूँदें गिरनी शुरू हुईं और देखते-देखते मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी।  अपना-अपना काम रोक कर सब गैरेज में ही इधर-उधर छिप गए।
अरे ये क्या? आकाश केवल बारिश करके ही नहीं रुका,बल्कि बूंदों के पीछे-पीछे रुई के सफ़ेद फाहे से ओले भी झमाझम नाचते हुए गिरने लगे।
एक बड़ा सा सफ़ेद बर्फ का गोल टुकड़ा उछलता हुआ गैरेज के ठीक सामने की ओर आकर गिरा।
कॉकरोच चिल्लाया-"वो देखो वो देखो...."
-"क्या" मेंढकी ने गर्दन उठा कर देखते हुए कहा।
-"मुझे लगता है कि वो ओला नहीं है बल्कि उस में ही मंगल ग्रह के जुगनू आये हैं।" कॉकरोच ने पूरे विश्वास से कहा।
गिलहरी डाँट कर बोली -"चल ! तुझे वो ओला टैक्सी दिखती है क्या?"
सब हँस पड़े।
इतने में ही दीवार पर ऊपर की तरफ से रेंगती हुई एक छिपकली नीचे आई और बोली-"तुम लोग इस कॉकरोच की हँसी उड़ा रहे हो, मगर ये एकदम ठीक बात कह रहा है। मैं अभी ऊपर से देख रही थी, ये जो बड़ा सा ओला आकर गिरा है, इसमें से ज़ोर की चमक बार-बार निकलती है।  ये ज़रूर कोई अजूबा है।  साधारण बर्फ का गोला नहीं है।"
छिपकली की बात से सब चौकन्ने हो गए और रोमांचित होकर उस तरफ देखने लगे जिधर वह ओला पड़ा था। सचमुच ऐसा लग रहा था कि बर्फ का वह टुकड़ा धूप में चमक रहा हो।  लेकिन धूप का तो कहीं नामो-निशान नहीं था, आसमान तो बादलों से घिरा था।
-"शायद भीतर से जुगनू लोग टॉर्च डाल कर बाहर का मुआयना कर रहे हैं?" मेंढकी ने कहा।
-"तो वो निकलने में इतनी देर क्यों लगा रहे हैं?"गिलहरी से रहा न गया।
-"इतनी दूर से आये हैं, वो थके-मांदे भी तो होंगे।"कॉकरोच बोला।
-"और भूखे भी तो।" मेंढकी ने चिंता जताई।
-"अरे पर वो दिखते क्यों नहीं हैं? 'मिस्टर इंडिया' हैं क्या ?"छिपकली झल्लाई।
-"मिस्टर इंडिया कैसे हो सकते हैं, वे तो मिस्टर मंगल होंगे।" कॉकरोच ने अपना ज्ञान बघारा।
एकाएक वहां भगदड़ सी मच गयी। एक चूहा तेज़ी से दौड़ता हुआ सामने से भागा, उसके पीछे-पीछे एक बिल्ली भी दौड़ लगाती हुई आई। चूहा झटपट एक पेड़ की जड़ में बने बिल में घुस गया, बिल्ली हाथ मलती रह गयी।
बिल्ली ने वहां इतने सारे प्राणियों को देखा तो शर्म से पानी-पानी हो गयी। अपनी झेंप मिटाने के लिए बोली-"मैं तो इस चूहे को खीर खिलाने के लिए बुला रही थी। शरारती कहीं का ! देखो न जाने कहाँ छिप गया।"                  
  
      

शनिवार, 17 सितंबर 2016

आज श्रीहान और सुयश स्कूल से कुछ देरी से वापस आने वाले थे। गिलहरी ने खुद अपने कानों से सुना था ,वे अपनी मम्मी को बता रहे थे कि आज उनके स्कूल में खेल की प्रतियोगिता है इसलिए लौटने में देरी होगी। मम्मी ने उन्हें लंचबॉक्स में भी न जाने क्या-क्या स्वादिष्ट चीज़ें बना कर दी थीं।  गिलहरी तो उसकी खुशबू से ही तृप्त हो गयी थी। वह बार-बार उनके बैग के चारों ओर चक्कर काटती और ये सोचती रही कि काश, वे दोनों टिफिन में कुछ जूठन बचा कर ले आएं और उनकी मम्मी गार्डन में रखी डस्टबिन में उसे फेंकें। गिलहरी के मज़े आ जाएँ। तभी गिलहरी को याद आया कि कल क्लब हॉउस के पीछे वाले पेड़ पर बैठे तोते ने कहा था-ज़्यादा लालच नहीं करना चाहिए। लालच सेहत को गिरा देता है।
गिलहरी ने मन ही मन भगवान से माफ़ी मांगी और दौड़ कर साइकिल गैरेज के चाबी वाले छेद में आराम करने चल दी। आज श्रीहान और सुयश देरी से आने वाले थे तो खूब देर तक उस जगह बैठने का मौका था।  गिलहरी ने हाथ में दो बड़े-बड़े जामुन लिए और फुदकती हुई चल दी।
लेकिन वहां जाकर तो गिलहरी के मंसूबों पर पानी ही फिर गया। वहां तो पहले से ही कबूतर, कॉकरोच, चिड़िया और छोटी मेंढकी जमा थे। मेंढकी लॉन से पानी का पाइप खींच कर चाबीघर को धो रही थी और कबूतर पंखों से झाड़-झाड़ कर उसे साफ़ कर रहा था। चिड़िया क्यारी से छोटे-छोटे फूल लाकर चाबीघर को सजाने में लगी थी। कॉकरोच चींटियों को वहां आने से रोक रहा था।
गिलहरी को अचम्भा हुआ-ये सब तैयारी किसलिए ? क्या यहाँ कोई आने वाला था? उसने आख़िर पूछ ही लिया।
चिड़िया चहचहाई-"लो, इसे ये भी मालूम नहीं,अरे हर साल सोलह अक्टूबर को मंगल ग्रह के जुगनू यहाँ आते हैं या नहीं? धरती पर ! वही तो हमारे मेहमान हैं। उन्हें ठहराने की तैयारी नहीं करनी ?"
ओह, अच्छा मैं तो भूल ही गयी थी।
मंगल ग्रह के जुगनू ए और वन हर साल ही यहाँ आते थे।  ये सब उनके दोस्त बन गए थे, सब मिल कर खूब मौज-मस्ती करते थे।
चिड़िया बोली-"इस बार तो ए और वन ये देख कर खुश हो जायेंगे कि श्रीहान और सुयश स्कूल भी जाने लगे हैं।"
-"हम लोग उन्हें स्कूल दिखा कर भी लाएंगे।" कबूतर ने पंख फड़फड़ाते हुए कहा।
-"कैसे" मेंढकी बोली।
-"कैसे क्या? मंगल ग्रह के जुगनू कोई हाथी-घोड़े थोड़े ही हैं,उन्हें तो मैं अपनी पीठ पर बैठा कर ही ले जाऊंगा।" कॉकरोच बोला।
गिलहरी से नहीं रहा गया। फ़ौरन बोली-"पीठ पर तो बैठा लेगा, पर वहां इतनी दूर जायेगा कैसे? सोमवार को गया तो मंगल को पहुंचेगा।"
-"अच्छा है न, मंगल ग्रह के जुगनू मंगल को ही पहुंचेंगे।" मेंढकी ने हंसी दबा कर कहा।
अपनी इस तरह खिल्ली उड़ती देख कर कॉकरोच तिलमिला गया।
बोला-"क्यों, जब उनकी मम्मी स्कूल छोड़ने जाती हैं तो वह क्या कार धीरे-धीरे नहीं चलातीं ?
-"अरे हाँ,ये ठीक कह रहा है, वह बहुत धीरे चलाती हैं, एक दिन सुयश अपना लिखने का चॉक घर पर ही भूल गया था, तो पीछे से उसे चौंच में दबा कर मैं देने गया। मैंने देखा कार तब तक आधे रास्ते में ही पहुंची थी। मैं उड़ता तो कार बार-बार पीछे रह जाती थी।"कबूतर ने कॉकरोच का पक्ष लिया।
-"फिर"? गिलहरी ने पूछा।
-"फिर क्या, मैं कार की खिड़की से चॉक सुयश को दे आया।" कबूतर बोला।
-"वाह !" सब एक साथ बोले।
-"मम्मी धीरे चलाती हैं तो श्रीहान कितना नाराज़ होता है, उसे पापा के साथ तेज़ी से घूमना अच्छा लगता है ?"कबूतर ने कहा।
-"लेकिन श्रीहान को तो साइकिल बहुत तेज़ चलाना अच्छा लगता है।"गिलहरी बोली।
-"अरे जा-जा, कल तो सड़क पर इतना धीरे चला रहा था कि मैं सड़क को आसानी से पार कर गयी।" मेंढकी ने गिलहरी की बात काटी।
गिलहरी ने झट सफाई दी-"अरे कल तो वो प्रगुनी को साइकिल चलाना सिखा रहा था, उस से कह रहा था कि ऑलिम्पिक में मैडल लड़कियों को ही मिलता है।"     
चिड़िया ने बात का पटाक्षेप किया, बोली-"कॉकरोच भाई का क्या है, ए और वन को पीठ पर बैठा कर श्रीहान या सुयश के बैग में ही घुस जायेंगे, तो स्कूल पहुँच जायेंगे।"            
             

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

झाँका पिंजरे में से, बोला-
प्यारा टैडी बियर
मैं जाऊंगा मंगल-ग्रह पे
बनके इंजीनियर !
बत्तख बोली-एक तो मैं हूँ
साथ मेरा मंगेतर
कितने ले जाने हैं तुमको
मंगल-ग्रह पे टीचर ?
भैया जुगनू जी मंगल पर
चाहो कोई नेता
गैंडा बोला-मुझे बुलाना
बाक़ी सब अभिनेता
जर्मन अंग्रेजी जापानी
सीखी उसने भाषा
मंगल-ग्रह पर जाने की थी
तोते को भी आशा
मुर्गा बोला- होता कैसे
बोलो वहां सवेरा ?
अगर कहो तो मैं भी चल कर
डालूँ अपना डेरा
सुना बहुत हैं बड़े वहां तो
गड्ढे उस धरती पर
वरना मैं भी आती मंगल
हथिनी बोली डर कर
भालू  बोला मुझे पता है
जंगल का कानून
मुझको लेके चलो बना दूं
मंगल का कानून 
   

सोमवार, 5 सितंबर 2016

मंगल ग्रह के जुगनू - 3

खूब ज़ोर से बारिश हो रही थी। बादलों को बरसते हुए कई घंटे बीत चुके थे, पर न जाने उनके मटके में कितना पानी था, उँडेले ही जा रहे थे।
बच्चे खेलना छोड़ कर घरों के भीतर तो आ गए थे, पर वर्षा का आनंद ही कुछ ऐसा था कि भीतर बैठ कर उनका मन नहीं लग रहा था।  खिड़कियों से झांकते सभी इस इंतज़ार में थे कि बारिश रुके तो फिर से धमाचौकड़ी मचाने घर से बाहर निकलें।
लेकिन जैसे-जैसे पानी बरसता था, चारों ओर सड़कों और मैदानों में पानी के तालाब से बनते जाते थे।
शायद श्रीहान और सुयश को मौसम के इस मिजाज़ का पूर्वानुमान पहले ही हो गया था इसी से उन्होंने अपनी साइकिलों के लिए एक छोटा सा गैरेज बना लिया था।
दोनों में से जो भी पहले आता उसे अपनी साइकिल भीतर की ओर रखनी पड़ती। जो देर से आकर बाद में रखता उसकी बाहर की ओर। मज़े की बात ये थी कि दोनों अक्सर साथ-साथ ही वापस घर आते, लेकिन दोनों ही ये कोशिश करते थे कि पीछे आकर अपनी साइकिल बाहर की ओर ही रखें ताकि सुबह पहले उसे निकाला जा  सके। कभी-कभी रात को खाना खाने के बाद भी यदि साइकिल पर घूमने का मन हो तो आराम से  लेकर सड़क पर आया जा  सकता था।
साइकिल गैरेज की छत की ओर एक छोटा सा छेद भी बनाया गया था, जिस से कभी-कभी साइकिल की चाबी वहां रखी जा सके।
एक ईंट हटा कर बनाया गया यह चाबी घर इतना सुन्दर था कि सामने के पेड़ पर रहने वाली गिलहरी का मन तो उसे देख कर ललचाता ही रहता था। वह चाहती थी कि उस चाबी घर को वह अपना रहने का कमरा बना ले। पेड़ के ऊबड़-खाबड़ तने पर सोने से गिलहरी की कमर दुखती थी। बढ़िया पक्के ईंट के फर्श पर सोने का तो आनंद ही निराला था। गिलहरी ने एक दिन खिड़की से खुद देखा था कि बाबा रामदेव टीवी पर पक्के फ़र्श पर सोने के कई लाभ बता रहे थे।
समस्या ये थी कि वहां श्रीहान और सुयश कभी-कभी अपनी चाबियाँ रखा करते थे। गिलहरी डरती थी कि वह आराम से वहां बैठी हो और उसी समय कोई आ जाये तो उसे दुम दबा कर भागना पड़े।